कहीं हॉस्पिटल से तो नहीं ले आए ये नई बीमारी, तब तो …
कोलकाता टाइम्स :
हम हॉस्पिटल जाते हैं किसी बीमारी का इलाज करवाने या बीमार को मिलने। अगर बीमारी कुछ बड़ी होती है तो हमें वहां भर्ती भी होना पड़ता है। लेकिन शायद आपको ये मालूम न हो कि कभी-कभी बीमारी से बचने के चक्कर में आप बीमार भी हो सकते हैं। जी हां, अस्पताल में रहने के दौरान आप हॉस्पिटल अक्वायर्ड इंफेक्शन यानी एचएआई का शिकार भी हो सकते हैं। हाईजीन के अभाव में और अस्पताल के वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और कीटाणुओं के संपर्क में आने से ये इंफेक्शन होने का डर रहता है। खासकर गर्मियों में हर जिले के सरकारी और गैर- सरकारी अस्पतालों में फ्लू और इंफेक्शन के कैसेज में बढ़ोतरी देखी जाती है, इस दौरान अगर आप किसी इलाज के लिए या बीमार को मिलने जा रहे हैं तो रहें ज्यादा सर्तक। कैसे फैलता है ये इंफेक्शन हॉस्पिटल के वातावरण में बैक्टीरिया, वायरस या फंगस जैसे रोगाणु मौजूद होते हैं, जो आसानी से शरीर में पहुंच जाते हैं। हॉस्पिटल में भर्ती कई मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, इसलिए वे आसानी से एचएआई की चपेट में आ जाते हैं। कई मरीजों में यह हॉस्पिटल में फैली गंदगी या फिर हॉस्पिटल के स्टाफ के द्वारा सफाई न रखने से फैलता है। हॉस्पिटलों के जनरल वार्ड में कई मरीज एक साथ भर्ती रहते हैं, जिनके आपस में बातचीत से भी संक्रमण हो सकता है।
कॉन्टैक्ट ट्रांसमिशन
कॉन्टैक्ट ट्रांसमिशन यानी संपर्क संचरण एचएआई का सबसे सामान्य माध्यम है। मरीज रोगाणुओं के सीधे संपर्क में आते हैं, तब इनसे संक्रमित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन
यह संचरण तब होता है, जब किसी संक्रमित व्यक्ति से रोगाणु युक्त छोटी बूंदें (ड्रॉपलेट) हवा के जरिये थोड़ी दूरी तय करती हैं और किसी मरीज के शरीर पर जमा हो जाती हैं।
एयरबोर्न ट्रांसमिशन
इसमें संक्रमित व्यक्ति से निकले रोगाणु लंबे समय तक लघु कणों के रूप में हवा में तैरते रहते हैं। जब कोई रोगी इनके संपर्क में आता है तो ये उसे संक्रमित कर देते हैं। कॉमन वहिकल ट्रांसमिशन यह संक्रमण हॉस्पिटल की टेबल, कुर्सियों, पलंग, यंत्रों और उपकरणों के माध्यम से फैलता है। किन संक्रमणों की आशंका है अधिक – मूत्र मार्ग का संक्रमण (यूटीआई) – आंत में जलन (गैस्ट्रोएन्टराइटिस) – प्रासविक ज्वर (प्यूअर्परल फीवर) – श्वसन मार्ग के निचले भाग का संक्रमण इनमें मूत्रमार्ग का संक्रमण सबसे प्रचलित प्रकार है
एचएआई के लक्षण
इसके लक्षणों में प्रमुख हैं
सूजन, बुखार, फोड़े होना, दर्द, संक्रमण वाले स्थान पर उत्तेजना, स्किन रैशेज, मल और मूत्र के रंग में बदलाव आ जाना आदि।
किन्हें होता है अधिक खतरा –
जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है।
– जो लोग लंबे समय तक (आईसीयू) में रहते हैं।
– सरकारी हॉस्पिटलों में साफ-सफाई का अभाव और मरीजों द्वारा बेड शेयर किया जाना।
क्यों बढ़ रहे हैं एचएआई के मामले
– पहले एचएआई की तीव्रता मापने के लिए कोई मापदंड नहीं था, लेकिन अब नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड ऑफ हॉस्पिटल (एन. ए. बी. एच.) ने कई नियम और मापदंड बनाए हैं, जिनका पालन करना प्रत्येक हॉस्पिटल के लिए अनिवार्य है। यही कारण है कि अब इन संक्रमणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
– एचएआई के बढ़ते मामलों का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक इस्तेमाल, जिससे संक्रमण से बचाव कठिन हो गया है।
बचाव के उपाय
– एचएआई के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ-साथ आम लोगों की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। इनकी रोकथाम के लिए डॉक्टरों, हॉस्पिटल प्रशासन, मरीजों और उनके साथ हॉस्पिटल में आने वाले लोगों को भी प्रयास करने होंगे।
-स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में क्यूए/क्यूसी उपायों को लागू करना। इसके अंतर्गत उन उत्पादों की गुणवत्ता पर बल दिया जाता है, जिनका उपयोग हॉस्पिटल में किया जाता है।
– हॉस्पिटल के अंदर की हवा की गुणवत्ता पर नियंत्रण और जांच आवश्यक है।