सुनाते हैं विश्व के पहला और आखरी ‘चरवाहा स्कूल’ की कहानी
कोलकाता टाइम्स
विश्व का पहला ‘फ्लॉप’ चरवाहा विद्यालय हंसी आ रही है ना यह सुनकर ? पर यह एक हकीकत है और वह भी भारत की धरती पर ही इस विद्यालय की स्थापना की गए थी। बिहार के वैशाली का गोरौल प्रखंड में था यह स्कूल। आजकल यहां तीन मंजिला केला अनुसंधान केंद्र बनाने का काम ज़ोरों पर है, लेकिन 26 साल पहले यहां की तस्वीर कुछ और थी।
26 साल पहले गोरौल चरवाहा विद्यालयके चलते सुर्खियों में था। सुबह यहां जानवरों को चराने वाले बच्चे आते, बच्चे अपने जानवरों को चरने के लिए छोड़ देते और स्कूल में तैनात मास्टर साहब उन्हें पढ़ाते दूसरी तरफ स्कूल के ही एक कोने में स्त्रियां पापड़, बड़ी, अचार बनाने की ट्रेनिंग ले रही होती।
अगर कोई जानवर बीमार पड़ जाता, तो उसे देखने के लिए पशु चिकित्सक आते। बच्चे घर लौटते तो अपने साथ हरे चारे का गठ्ठर साथ लेकर जाते ताकि घर में जानवर के खाने की चिंता उन्हें न हो।
गोरौल के स्थानीय पत्रकार प्रभात कुमार बताते हैं, “पहले साल तो स्कूल जम कर चला लेकिन दूसरे साल आते-आते टीचर्स ने आना बंद कर दिया और उसके बाद बच्चों ने।” चरवाहा विद्यालय राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेहद चर्चित प्रयोगों में से एक था। पांच से 15 साल की उम्र के बच्चे जो जानवरों को चराते है, उनको ध्यान में रखकर चरवाहा विद्यालय खोला गया था। ये एक ऐसा प्रयोग था, जिसे यूनीसेफ सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सराहा लेकिन बाद में ये फ्लॉप हो गया।
वरिष्ठ शिक्षा पत्रकार लक्ष्मीकांत सजल बताते हैं, “अमरीका और जापान से कई टीम इस विद्यालय को देखने आई थीं। आलम ये था कि हम लोग इस प्रयोग पर हंस रहे थे लेकिन पूरी दुनिया इस पर रिसर्च कर रही थी। ”
दिसंबर 1991 में अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 23 दिसंबर 1991 को मुजफ्फरपुर के तुर्की में 25 एकड़ की जमीन मे पहला चरवाहा विद्यालय खुला था। तत्कालीन जिलाधिकारी एचसी सिरोही के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया कि विद्यालय में पांच शिक्षक, नेहरू युवा केंद्र के पांच स्वयंसेवी और 5 एजुकेशन इन्सट्रक्टर की तैनाती की गई थी। साथ ही स्कूल का उद्घाटन औपचारिक तौर पर 15 जनवरी 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने किया।
15 जनवरी 1992 को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने जब ये स्कूल खोला तो उन्होंने अपने देसी स्टाइल में बच्चों की क्लास भोजपुरी में ली और उन्हें गिनती लिखना बताया था। हाशिए पर पड़ी आबादी से उन्होंने तब कहा, “अपने ज़मींदारों को ‘मालिक’ कहना छोड़ दीजिए और मार्च 1992 तक 113 चरवाहा विद्यालय राज्य(अविभाजित बिहार) में खोले जाएंगे।” तुर्की के बाद दूसरा चरवाहा विद्यालय रांची के पास झीरी में 20 एकड़ की ज़मीन पर खुला था।
पूर्व मुख्यमंत्री और उस दौर में लालू यादव के साथी जीतन राम मांझी कहते हैं, “ये सिर्फ एक आईवॉश था। इसका कोई व्यवहारिक लक्ष्य और पक्ष नहीं था, इसलिए खत्म भी हो गया।
बिहार में 15 साल लालू यादव शासन काल में ये चरवाहा विद्यालय फ्लॉप तो हुए लेकिन बंद करने की घोषणा कभी नहीं हुई. दिलचस्प है कि नीतीश कुमार भी साल 2005 में जब शासन में आए तब भी इन स्कूलों को लेकर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया गया।
इस चरवाहा स्कूल चलाने की जिम्मेदारी कृषि, सिंचाई, उद्योग, पशु पालन, ग्रामीण विकास और शिक्षा विभाग पर थी. इसमें पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन, दो पोशाक, किताबें और मासिक स्टाइपेंड के तौर पर नौ रुपये मिलते थे। इसके अलावा बच्चों को रोजाना एक रुपये मिलता था लेकिन ये प्रावधान बिहार में सरकारी स्कूल में कक्षा एक से आठ तक पढ़ने वाले सभी छात्रों के लिए था।