कोलकाता टाइम्स
दुनिया चाहे कितनी भी आगे निकल जाये। महिलाएं कोई भी काम में मर्दों से अव्वल हो जाये पर आज भी कई ऐसे काम है जिन्हे करने पर महिलाओं पर पावंदी है। ऐसा ही कुछ होता है शवयात्रा का नजारा। आपने कई लोगों को शवयात्रा में जाते हुए देखा होगा। लेकिन महिलाओं को शायद ही देखा होगा। शव यात्रा में केवल पुरुषों की ही मौजूदगी होती हैं लेकिन महिलाऐं नदारद रहती हैं। क्या आप जानते हैं इसके पीछे की वजह ?
आपको ये बात शायद गले न उतरे लेकिन ये हकीकत है कि प्राचीन हिंदू शास्त्रों में महिलाओं को बेहद आजादी दी गई है। इन ग्रंथों में कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाओं को श्मशान घाट नहीं जाना चाहिए या मृतक परिजन का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए। इसके बावजूद महिलाओं को अंतिम संस्कार के समय श्मशान में जाने से रोका जाता है। इसके पीछे कुछ विशेष तर्क दिए जाते हैं। इनके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
दरअसल, समाज में महिलाओं को कोमल ह्रदय का माना जाता है। कहा जाता है कि वे किसी भी बात पर सहज ही डर सकती है। असल में अंतिम संस्कार के बाद मृत शरीर अकड़ने लगता है जिसकी वजह से कई बार अजीबोगरीब आवाजें आने लगती हैं। इस कारण महिलाओं को डर लग सकता है।
श्मशान में मृतक का अंतिम संस्कार करते समय शोक का माहौल होता है। उस समय लोग रोते हैं जिसका असल महिलाओं और छोटे बच्चों के मन पर पड़ सकता है। इसलिए उन्हें श्मशान घाट जानें नहीं दिया जाता। समाज में प्रचलित इस मान्यता के कारण महिलाओं और छोटे बच्चों का श्मशान में जाना वर्जित किया गया है।
मान्यता यह भी है कि किसी के मरने से घर अशुद्ध हो जाता है। इसीलिए जब मृतक के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है तो घर की महिलाओं को यह जिम्मेदारी दी जाती है कि वह पीछे से घर को संभाले और उसकी धार्मिक रूप सफाई करें। यदि महिलाएं श्मशान जाएंगी तो यह क्रिया नहीं हो पाएगी।
हालाँकि इसके पीछे विज्ञान का कारन अलग ही है। जब शव जलाया जाता है तो मृतक के शरीर से निकले किटाणु आसपास मौजू द लोगों के शरीर पर चले जाते हैं। इसलिए शमशान से वापस लौटने के बाद सबसे पहले स्नान किया जाता है। माना जाता है कि आदमियों के बाल छोटे-छोटे होते हैं इसलिए ये किटाणु उनके शरीर से स्नान के दौरान आसानी से निकल जाते हैं लेकिन महिलाओं के बाल लंबे होते हैं। इसलिए उनके शरीर पर ये किटाणु स्नान के बाद भी रह जाते हैं।