February 22, 2025     Select Language
Home Archive by category साहित्य व कला (Page 5)

साहित्य व कला

Editor Choice Hindi KT Popular धर्म साहित्य व कला

अपने-अपने भारत रत्न
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-डॉ. सत्यवान सौरभ भारत रत्न पुरस्कार की चयन पद्धति क्या हो, निर्णय की प्रणाली क्या हो, इसमें कौन-कौन से लोग शामिल होने चाहिए? अभी इस पर बात नहीं हो रही है। अब तक जिन हस्तियों को भारत रत्न मिल चुका है। हम उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल नहीं उठाते। लेकिन एक प्रश्न जरूर है कि माँ […]Continue Reading
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कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा आज का भारत
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-प्रियंका सौरभ सरकार का क़र्ज़ इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आमदनी कितनी है और ख़र्चे कितने हैं। अगर ख़र्चा आमदनी से ज़्यादा है तो सरकार को उधार या क़र्ज़ लेना पड़ता है। इसका सीधा असर सरकार के राजकोषीय घाटे पर पड़ता है। आज जो इतना कर्ज़ लिया जा रहा है इसका बोझ […]Continue Reading
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रखना सदा सहेजकर, दिल में हिंदुस्तान।।
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-डॉ सत्यवान ‘सौरभ’, फिल्म-खेल का ही चढ़ा, है सब पे उन्माद। फौजी मरता देश पर,कौन करे अब याद।। ●●● आज़ादी अब रो रही, देश हुआ बेचैन। देख शहीदों के भरे, दुःख से यारों नैन।। ●●● मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद। सीमा पर मर मिट गए, जितने वीर शहीद।। ●●● काम करो इंग्लैंड में, […]Continue Reading
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फिर से स्वर्ग बन रहा है हमारा कश्मीर
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-प्रियंका सौरभ अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद, कश्मीरी भारतीयों की नव स्थापित फर्मों में काम कर रहें हैं और अच्छा पैसा कमा रहें हैं। अधिक नौकरियाँ पैदा करने से अनिवार्य रूप से अपराध कम हो रहें है।  कश्मीरी अपनी जमीन पट्टे पर देकर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहें है। निजी व्यापार मालिक कश्मीर […]Continue Reading
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क्यों नहीं अभिभावकों को सरकारी स्कूलों पर भरोसा ?
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–प्रियंका सौरभ हालिया अध्ययन ने पुष्टि की है कि शिक्षा की खराब गुणवत्ता के कारण माता-पिता को सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं है और वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाना पसंद करते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें ट्यूशन और अन्य फीस पर काफी अधिक खर्च करना पड़े। आज देश भर के सरकारी […]Continue Reading
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मोबाइल बन रहे रिश्तों में दरार की वजह? मोबाइल फोन के अनुचित उपयोग के कारण आपसी रिश्तों को हो रहा नुकसान
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– प्रियंका सौरभ सोचिए आज क्यों मोबाइल बन रहे रिश्तों में दरार की वजह? कोई माने या न माने, वास्तविकता में मोबाइल के हद से ज्यादा उपयोग से सामाजिक रिश्तों में हम सब की दिक्कतें बढ़ी हैं। आज के समय में एक ही घर में रह रहे लोग एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए भी […]Continue Reading
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‘सनातन धर्म’ के बदलते अर्थ
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डॉ सत्यवान सौरभ  “सनातन धर्म” शब्द को कैसे हेरफेर और हथियार बनाया गया है और हिंदू धर्म के ढांचे के भीतर जाति-विशेषाधिकार प्राप्त हिंदुओं की जाति भेदभाव को संबोधित करने में क्या जिम्मेदारियां हैं?  ये सोचने का विषय है।  सनातन धर्म शाश्वत, कालातीत और अपरिवर्तनीय परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है जो भारत-खंड (भारतीय उपमहाद्वीप) के भूभाग में […]Continue Reading
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चिंताजनक है अखबारों और लेखकों की स्थिति* 
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-डॉ सत्यवान सौरभ समाचार पत्र और यहां तक कि लेखकों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा। बदहाल होती स्थिति पर सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे? सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे। एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा उत्पादित समाचार ले लेते […]Continue Reading
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बदलती रामलीला: आस्था में अश्लीलता का तड़का
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-डॉ सत्यवान सौरभ जब आस्था में अश्लीलता का तड़का लगा दिया जाता है तो वह न सिर्फ उपहास का कारण बन जाती है बल्कि बहुसंख्यक लोगों की भावनाएं भी आहत होती हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र समाज को प्रेम, उदारता, सम्मान व सद्भाव का संदेश देता है। पर अफसोस, राम के चरित्र व आदर्शों […]Continue Reading
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संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते
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-प्रियंका सौरभ आज हम में से बहुतों के लिए खून के रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं। ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं। और आश्चर्य की बात ये कि ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया है। वैसे तो हमारे सामाजिक संबंधों और […]Continue Reading