हारा-थका किसान
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—डॉo सत्यवान ‘सौरभ’ बजते घुँघरू बैल के, मानो गाये गीत। चप्पा-चप्पा खिल उठे, पा हलधर की प्रीत॥ देता पानी खेत को, जागे सारी रात। चुनकर कांटे बांटता, फूलों की सौगात॥ आंधी खेल बिगाड़ती, मौसम दे अभिशाप। मेहनत से न भागता, सर्दी हो या ताप॥ बदल गया मौसम अहो, हारा-थका किसान। सूखे-सूखे खेत Continue Reading