देर तक सोना भी आपको बनाता है कामियाब
आदि-अनंत काल से सुनते आ रहे हैं कि जल्दी सोकर तड़के उठना बहुत फायदेमंद होता है। ये आदत इंसान को सेहतमंद, दौलतमंद और अक्लमंद बनाती है। इस बात की पुस्टि के लिए हमारे पास कई उदहारण भी है जैसे – एप्पल कंपनी के सीईओ टिम कुक सुबह पौने चार बजे उठते हैं। फिएट कंपनी के सीईओ सर्जियो मार्शियोन सुबह 3. 30 बजे और मशहूर ब्रिटिश कारोबारी रिचर्ड ब्रैनसन सुबह पौने छह बजे उठ जाते हैं। जाहिर है ये लोग बहुत कामयाब हैं। तो, क्या इनकी कामयाबी का राज सुबह उठने में छुपा है?
लकिन आज हम आपको बताते हैं आपकी यह सोच गलत है। क्योंकि एक तजुर्बे से मालूम हुआ है कि दुनिया दो हिस्सों में बंटी है। आधे लोग ऐसे हैं, जिन्हें सुबह उठना पसंद है। वहीं बाकी के आधे लोग देर तक सोना और रात में देर तक जागना पसंद करते हैं। अब ऐसा तो नहीं है कि देर तक सोने वाली दुनिया की आधी आबादी जिंदगी में नाकाम है।
दुनिया भर के इंसानों में करीब एक चौथाई ऐसे हैं, जो सुबह उठना पसंद करते हैं। वहीं करीब-करीब इतने ही लोग रात में देर तक जागना पसंद करते हैं। रिसर्च से पता चला है कि सुबह उठने वाले लोग ज्यादा सहयोगी मिजाज के होते हैं। वो किसी भी घटना का सही विश्लेषण कर पाते हैं। इनके मुकाबले रात में देर तक जागने वाले कल्पनाशीलता के मामले में बाजी मार ले जाते हैं। वो अकेले ज्यादा वक्त बिताना पसंद करते हैं।
कई बार हुए रिसर्च ये साबित कर चुके हैं कि सुबह उठने वाले आत्मप्रेरित होते हैं। वो लगातार काम करते हैं। दूसरों की बात भी वो ज्यादा मानते हैं। वो बहुत बड़े टारगेट रखते हैं। वो भविष्य की योजनाएं ज्यादा बेहतर बनाते हैं। सुबह उठने वाले अपनी सेहत का भी ज्यादा खयाल रखते हैं। रात में देर तक जगने वालों के मुकाबले, सुबह उठने वाले शराब कम पीते हैं। डिप्रेशन के भी कम ही शिकार होते हैं।
वहीं, रात में देर तक जागने वाले याददाश्त के मोर्चे पर बीस बैठते हैं। अक्ल के मामले में भी वो सुबह उठने वालों से बेहतर होते हैं। उनकी काम करने की रफ्तार भी ज्यादा होती है। रात में देर तक जागने वाले नए प्रयोग करने में भी खुले दिमाग से काम लेते हैं। रात में देर तक जागने वाले सुबह उठने वालों की तरह ही सेहतमंद, अक्लमंद और ज्यादा दौलतमंद भी होते हैं।
साफ है कि सुबह जल्दी उठने का टारगेट सेट करना कोई फायदे का सौदा नहीं। आपका मन कुछ देर और सोने का है, तो सो जाइए। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक कैथरीना वुल्फ कहती हैं कि हर इंसान के शरीर में एक कुदरती घड़ी है। उनकी नींद और सोना-जागना उसी हिसाब से चलता है। इसे सिर्काडियन क्लॉक कहते हैं। इसी घड़ी के हिसाब से हमारे शरीर को सोने-जागने का मन होता है।
अब किसी को जबरदस्ती उसकी बॉडी क्लॉक के खिलाफ जाकर सुबह उठने या देर तक जागने को कहा जाएगा, तो उसका बुरा असर ही होगा। शरीर से जबरदस्ती कभी भी फायदेमंद नहीं होती। कैथरीना कहती हैं कि लोगों को उनकी सिर्काडियन क्लॉक यानी शरीर की जैविक घड़ी के हिसाब से ही चलने दिया जाए, तो उनका परफॉर्मेंस बेहतर होता है।
किसी देर रात तक जागने वाले को सुबह उठने को मजबूर करेंगे, तो वो अलसाया हुआ रहेगा। काम में उसका मन कम लगेगा। दिमाग का भी वो अच्छे से इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। उनका वजन बढ़ सकता है। सेहत खराब हो सकती है।
और, ऐसा नहीं है कि हर कामयाब इंसान सुबह उठता है। बॉक्स कंपनी के सीईओ आरोन लेवी, बजफीड के सीईओ जोनाह पेरेटी, आयरलैंड के उपन्यासकार जेम्स जॉयस, अमरीकी लेखिका गर्ट्रूडे स्टेन, फ्रेंच उपन्यासकार गुस्ताव फ्लोबर्ट ये सब के सब देर तक सोया करते थे और रात में जागते रहते थे।
अब तक किसी भी रिसर्च से ये बात पक्के तौर पर साबित नहीं हो पाई है कि सुबह उठना कामयाबी का शर्तिया नुस्खा है। आपके शरीर के हॉरमोन अक्सर आपकी बॉडी क्लॉक के हिसाब से रिलीज होते हैं। आदत बदलने से हॉरमेन का तालमेल बिगड़ सकता है। क्योंकि रात में देर तक जागने वाला सुबह उठेगा, तो उसके शरीर को तो यही लगेगा कि वो सो रहा है। उसके हॉरमेन देर से रिलीज होंगे। इसका सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।