कोलकाता टाइम्स
श्रावण मास भगवान शिवजी का प्रिय मास है। इस मास में पड़ने वाली शिवरात्रि का भी अपना विशेष महत्व है। वैसे तो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है लेकिन सावन की शिवरात्रि के दिन देश भर के शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। सावन मास में चल रही कांवड़ यात्रा के दौरान हर शिव भक्त का यही प्रयास रहता है कि वह पवित्र नदी का जल लाकर या तो सोमवार को जलाभिषेक करे या फिर शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक करे। इसलिए सावन की शिवरात्रि पर हर शिव मंदिर में कांवड़ियों की अच्छी खासी भीड़ होती है। इस बार तो सावन की शिवरात्रि पर बहुत ही अच्छा संयोग भी बन रहा है। दरअसल इस दिन त्रयोदशी भी है और रात 10.45 के बाद चतुर्दशी लग जायेगी। शिवरात्रि में रात्रि के समय शिव पूजा विशेष फलदायी होती है।
इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, पंचामृत अभिषेक करें। रूद्राभिषेक और ओम नम: शिवाय एवं महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। विल्ब पत्र, पुष्प, भांग, धतूरा, आंकड़े के फूल, सूखे मेवे से शिवजी का श्रृंगार करें। इस पर्व पर पत्र पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नंदी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलाइची, चंदन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। रात को जागरण करके चार बार शिव आरती का विधान जरूरी है।
शिवरात्रि के प्रदोष काल में स्फटिक शिवलिंग को शुद्ध गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान करवा कर धूप−दीप जलाकर निम्न मंत्र का जाप करने से समस्त बाधाओं का अंत होता है। शिवरात्रि को एक मुखी रूद्राक्ष को गंगाजल से स्नान करवाकर धूप−दीप दिखा कर तख्ते पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। शिव रूप रूद्राक्ष के सामने बैठ कर सवा लाख मंत्र जप का संकल्प लेकर जाप आरंभ करने से काफी लाभ होता है। शिवरात्रि को रूद्राष्टक का पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है तथा मुक़दमे में जीत व समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।