ऐतिहासिक फैसला : व्यभिचार पर लगा सुप्रीम कोर्ट की मुहर, धारा 497 को किया खारिज
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कोलकाता टाइम्स
अब व्यभिचार नाम का कोई शब्द ही शायद नहीं रहा। एक अहम्में फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं है। आईपीसी की धारा-497 को खत्म करते हुए कोर्ट ने कहा कि विवाहेत्तर संबंध अपराध नहीं हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा ही सम्मान मिलना चाहिए। मिश्रा ने कहा कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। महिला के साथ असम्मान का व्यवहार अंसवैधानिक है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है और हर पुरुष को यह बात समझनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए.एम. खानविलकर शामिल हैं।
आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष का किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ उसकी रजामंदी से शारीरिक संबंध होता है तो उक्त महिला का पति उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करवा सकता है। हालांकि, पति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता। वहीं, जिस पुरुष के संबंध दूसरी महिला से थे, उसकी पत्नी भी उक्त महिला के खिलाफ मामला या शिकायत दर्ज नहीं करवा सकती, जबकि वह अपने पति पर कार्रवाई करवा सकती है। इतना ही नहीं, उनके रिश्तेदार भी पुरुष और महिला के खिलाफ शिकायत नहीं करा सकते।
बता दें कि स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दायर करके आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।