गले में 10 किलो का छल्ला, खूबसूरती नहीं नरक से बचाव का है रास्ता
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दास प्रथा और यौन शोषण से बचने के लिये ये महिलाएं गर्दन में पहनती हैं 10 किलो के छल्लेे गले में पीतल के मोटे-मोटे छल्ले पहनना कोई छोटी बात नहीं है मगर आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पूर्वी बर्मा की कायन जनजाति की महिलाओं के लिये ये तो बहुत ही आम सी बात है।
कायन महिलाएं अपनी गर्दन को लंबा दिखाने के लिये पीतल के मोटे छल्ले पहनती हैं। बर्मा की यह कायन महिलाएं इन छल्लों को ना केवल गर्दन में पहनती है बल्कि कलाई और जोड़ों पर भी ये पहनती हैं।
महिलाएं इस तरह के छल्ले क्यूं पहनती हैं, इस बारे में ठीक से कोई जानकारी नहीं है। लेकिन सिद्धांतों के अनुसार वे इसे इसलिये पहनती हैं कि जिस्से जंगल में बाघ उन्हें कोई चोट ना पहुंचाए। कुछ अन्य लोगों का कहना है कि कायन महिलाएं इन छल्लों को पहन कर बदसूरत दिखने लगती हैं, जिससे वह दास प्रथा और यौन शोषण से बच जाती हैं। ये है दुनिया की सबसे सेक्सी क्रिमिनल, सोशल साइट पर Pics हुईं वायरल आज की महिलाओं ने इसे पहनना बंद नहीं किया है क्योंकि वह यहां आने वाले टूरिस्ट को आकर्षित कर के उनसे अपने समुदाय के लिए महत्वपूर्ण राजस्व इकठ्ठा करने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। यह पीतल का छल्ला 5 साल की उम्र से बालिकाओं को पहनाना शुरु कर दिया जाता है। इनकी उम्र जैसे-जैसे बढ़ती चली जाती है, वैसे-वैसे गर्दन के छल्ले भी बढ़ने लगते हैं। इन छल्लों के सेट का वजन लगभग 10 किलो होता है। आप माने चाहे नहीं, लेकिन इन कायन महिलाओं को देखने के लिये दूर-दूर से टूरिस्ट आते हैं और अच्छे खासे पैसे दे कर जाते हैं। आइये तस्वीरों के जरिये और जानकारी लेते हैं इन कायन महिलाओं की। खूबसूरती का प्रतीक पूर्वी बर्मा की कायन जनजाति की महिलाएं गले में पड़े इन छल्लों को खूबसूरती का प्रतीक मानती हैं। उम्र के साथ छल्ले भी बढ़ते हैं कायन महिलाएं पीतल के इन छल्लों को 5 साल की उम्र से पहनना शुरु करती हैं और उम्र के हर साल एक छल्ला जोड़ती चली जाती हैं।
पतील के छल्ले का पूरा सेट 10 किलो का होता है इसलिये ज्यादातर महिलाएं इसे पूरा नहीं पहनती।
यह भारी छल्ला गर्दन को लंबा नहीं करता बल्कि छल्ले का भार उनकी गर्दन की हड्डी को नीचे दबा कर उनकी पसली को सिकोड़ देता है जिससे महिलाओं की गर्दन खुद ही लंबी दिखने लगती है।
कलाई और घुटनों में भी पहनी हैं छल्ले वैसे तो यह कायन महिलाएं अपनी कलाई और जोड़ों पर भी यह छल्ले पहनती हैं पर यह कभी भी पर्यटकों को उतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना गले में पड़े यह छ्ल्ले करते हैं