July 2, 2024     Select Language
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इस शहर में खूबसूरती और समृद्धि की जुगलबंदी देख रह जायेंगे 

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कोलकाता टाइम्स:

हली नज़र में मन को मोह लेने वाला है धेमाजी। गुवाहाटी से लगभग 400 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर में धान के मौसम में दूर-दूर तक हरियाली और धान की भीनी महक छाई रहती है। रबी की फसल के समय खेतों में यहां मुस्कराते हैं सरसों के पीले-पीले फूल। कला-संस्कृति यहां आधुनिकता के साथ गलबहियां करती दिखती है। पुरातन और नवीन यहां जिस खूबसूरती के साथ मिलते हैं, वह आपको अन्यत्र कम नजर आएगा। यहां विवाह-उत्सव में आप तमाम तरह के प्राचीन और स्थानीय मान्यताओं के बीच स्त्री-पुरुष की बराबरी व स्त्री स्वतंत्रता संबंधी नए मूल्य देख सकते हैं।

पान से रंगे होठों वाली वृद्धा दोनों हाथ पीछे रखकर बीहू की धुन पर नाचती है तो किसी खेत में बैठा कोई व्यक्ति मगन होकर बंसी बजा रहा होता है। यह सब दृश्य जब एक साथ उपस्थित होता है तो प्रतीत होता है जैसे कोई रहस्य अभी-अभी उजागर हुआ हो! ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में बसे इस जिले की खूबसूरती अवर्णनीय है। इसकी पृष्ठभूमि में है अरुणाचल हिमालय, जो इसके सौंदर्य में चार चांद लगा देता है। हिमालय और ब्रह्मपुत्र नदी के होने से यहां की धरती को विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से आच्छादित रहने का गौरव प्राप्त है। यह उन लोगों के लिए मुफीद स्थान है, जो शहरी चकाचौंध से दूर एक शांत शाम और हसीन सुबह बिताना चाहते हैं।

अहोम राजाओं की राजधानी : अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा यह शहर इतिहास और समकालीन इतिहास दोनों में ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐतिहासिक ‘अहोम’ राजाओं से जुड़े स्थानों से लेकर 1965 की भारत-चीन लड़ाई और 2004 में उल्फा उग्रवादियों द्वारा किए गए बम हमले (जब धेमाजी स्कूल के बहुत से छात्र मारे गए थे) असम के इतिहास में इस जिले की उपस्थिति को दर्शाते हैं।

माना जाता है कि वर्ष 1240 ईस्वी के आसपास प्रथम अहोम राजा ने धेमाजी जिले के हाबूंग नामक स्थान पर अपनी राजधानी बनाई, पर यहां बार-बार आने वाली बाढ़ ने राजा को अपनी राजधानी बदलने के लिए मजबूर कर दिया। उसके बाद यह स्थान ‘चुटिया’ राजाओं के अधीन आ गया, जो लंबे समय तक उनके पास बना रहा। 1523 ई. में उस समय के अहोम राजा ‘चुहुंग-मूंग’ ने चुटिया राज्य पर हमला करके धेमाजी को अपने नियंत्रण में ले लिया।

नायाब बहुआयामी संस्कृति : प्राचीन काल में समूचा धेमाजी स्थानीय मूल निवासियों का निवास स्थान था। इनमें मिसींग, सोनोवाल कचारी, देओरी और लालूंग आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा, अहोम, राभा, ताई खाम्ति, कोंच, केवट, कोलिबोर्ता, कलिता आदि मूल निवासी भी धेमाजी जिले में निवास करते हैं। इनके रहने से इस स्थान की संस्कृति खास है। दरअसल, अलग-अलग लोग अपनी अलग भाषा, विधि-विधान और परिधान के साथ खास विशिष्टता लाते हैं। समग्र रूप में वे स्थानीयता को बहुआयामी बना देते हैं। जैसे, मिसींग की भाषा और लिपि बोडो से अलग है। यही बात उनके पारंपरिक पहनावे के साथ भी है। इनकी पारंपरिक पोशाक विशेष अवसरों पर देखने में आती है, लेकिन यहां पुरुषों के कंधे का ‘गोमोसा’ या गमछा सबको एक साथ जोड़े रखता है। मूल निवासियों की संस्कृति में बहुत कुछ ऐसा है, जो एक दूसरे से अलग है, पर कुछ ऐसी बातें भी हैं जो उनमें समान हैं। उनमें भाषाई भिन्नता है तो खानपान की समानता है। पहनावे में मोटे तौर पर समानता है, पर उसकी बारीकियों का अंतर आप देख सकते हैं।

बुनाई का पारंपरिक कौशल : धेमाजी की मूल निवासी स्त्रियों में कपड़ों की बुनाई काफी प्रचलित है। बुनाई का यह खास कौशल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता रहता है। किशोरी होने से पहले ही लड़कियों को इतना प्रशिक्षण मिल चुका होता है कि वे अपने समुदाय विशेष की बुनाई कला को गहराई से सीख लेती हैं। प्राकृतिक रंगों के संबंध में इनका ज्ञान कमाल का होता है। इस शहर में मिसींग लोगों द्वारा बुने हुए कपड़े काफी प्रसिद्ध हैं। वे अपने काम के लिए खुद ही रुई की खेती करते हैं और उसका धागा बनाकर उनसे कपड़े बनाते हैं। उनके बनाए कपड़ों में सूती जैकेट, तौलिये, मफलर, चादर, शॉल (जिसे स्थानीय लोग ‘मेंडि’ कहते हैं) प्रमुख हैं। हिमालय के पास होने के कारण यहां ठंड ठीकठाक पड़ती है इसलिए गर्म कपड़े की जरूरत भी रहती है। इनके बनाए सूती कंबल काफी गर्म होते हैं। धेमाजी में सरकार द्वारा बुनकरों को काफी मदद दी जाती है। पूरे जिले में 170 से ज्यादा सहकारी संस्थान है, जिनमें बुनकर काम करते हैं और जिनके माध्यम से उनके द्वारा तैयार माल बाजार में उपलब्ध करवाया जाता है। मिसींग लोगों द्वारा बनाए गए कपड़ों की मांग देश से बाहर भी है।

बीहू के मनभावन स्वरूप : यहां त्योहारों में खास असमिया महक तो मिलती ही है, साथ ही पास के अरुणाचल प्रदेश का प्रभाव भी दिखता है। बीहू यहां का मुख्य त्योहार है, जिसमें खूब विविधता मिलती है। दरअसल, बीहू तीन प्रकार से मनाया जाता है-बोहाग बीहू, कांगाली बीहू और भोगाली बीहू। बोहाग बीहू वैशाख महीने में मनाया जाने वाला त्योहार है। यह अपने आप में विशिष्ट है। मान्यता है कि इन दिनों जब धरती पर पहली बार बारिश की बूंदें पड़ती हैं तो पृथ्वी नए रूप में सजती है। चारों ओर नवजीवन छा जाता है। किसान खेतों में पहली बार हल डालते हैं। पारंपरिक पोशाक पहने युवक-युवतियां मंडली बनाकर नृत्य करते हैं। इन्हीं दिनों वे अपने मनपसंद जीवनसाथी भी चुनते हैं। यही वजह है कि धेमाजी में इस समय को विवाह का समय भी कहा जाता है। वहीं कंगाली बीहू में, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है घर में अन्न नहीं होता है, खेत में फसल लगी होती है। खेत की फसल को कीड़े लग रहे होते हैं तो ‘कंगाली’ के उन दिनों में ईश्र्वर को याद करने की परंपरा है। माघ बिहू या भोगाली बीहू, भोग-विलास के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों तिल, चावल, नारियल, गन्ना आदि फसलें तैयार होकर आ जाती हैं, तो खानपान पर विशेष जोर रहता है। तरह-तरह के पकवान बनते हैं।

बोगीबील पुल : अब तक केरल के वेंबनाड रेलवे पुल को देश का सबसे लंबा रेलवे पुल होने का गौरव हासिल था। लेकिन अब यह गौरव बोगीबील पुल (4.6 किमी.) को मिल गया है। इसके प्रयोग में आने के बाद से धेमाजी से डिब्रुगढ़ की दूरी मात्र सौ किलोमीटर रह गई है, जिसे अधिकतम तीन घंटे में पूरा किया जा सकता है। यह पुल केवल देश के सबसे लंबे रेलवे पुल के रूप में ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि इसके ऊपर की तीन लेन की सड़क इसे और भी विशिष्ट बनाती है। बोगीबील पुल स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण बना हुआ है।

गेरुकामुख : धेमाजी शहर से 45 किलोमीटर दूर स्थित है गेरुकामुख। इस स्थान पर ब्रह्मपुत्र की मुख्य सहायक नदी सुबर्नसिरी पहाड़ों से नीचे उतरती है। इसलिए उसके आसपास का स्थान खूबसूरत प्राकृतिक परिदृश्य में बदल जाता है। चारों ओर की अप्रतिम हरियाली और भरी हुई सुबर्नसिरी से बनता अछूता सौंदर्य काफी आकर्षक होता है। घने जंगल से घिरा यह स्थान प्रकृतिप्रेमियों का स्वर्ग है। सर्दियों के मौसम में बड़ी संख्या में स्थानीय सैलानी इस स्थान पर आते हैं। यहां के प्राकृतिक दृश्य और पक्षियों के कलरव के बीच पिकनिक मनाना अपने आप में अनूठा अनुभव होता है। शहरी भागमभाग से दूर यह स्थान अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों का निवास स्थान भी है।कहां ठहरें :  धेमाजी एक छोटा शहर है, जो भारत के पर्यटन क्षितिज पर अपनी पहचान बना रहा है। इसके बावजूद वहां ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। कुछ छोटे-बड़े होटलों के साथ-साथ यहां कई टूरिस्ट लॉज भी हैं, जो सैलानियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप ठहरने की सुविधा देते हैं। इन जगहों की खासियत यह है कि ये महंगी नहीं हैं। बाजार के नजदीक होने के कारण यहां से खरीदारी भी आसान होती है।

कैसे और कब जाएं : धेमाजी हवाई मार्ग से आना हो तो नजदीकी हवाई अड्डा है गुवाहाटी। गुवाहाटी से धेमाजी की दूरी लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर है, जो रेल से तय की जा सकती है। धेमाजी रेलवे स्टेशन रेल संपर्क से जुड़ा है। हाल में बोगीबील पुल के खुल जाने से डिब्रुगढ़ के रास्ते धेमाजी आना आसान हो गया है। सर्दी का मौसम यहां आने के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। 

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