अनजाने भय का खौफ कब्जे हैं ! जानिए इसके पीछे है यह युति
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कोलकाता टाइम्स :
कभी-कभी किसी व्यक्ति के मन में अनजाना भय रहता है। उसे हर पल अपनी मृत्यु का डर सताता रहता है। वह जहां भी जाता है उसे लगता है कोई उसका पीछा कर रहा है। उसे लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचा सकता है। वह रात में घर से निकलने में भी डरता है…
तो इसका कारण है जन्मकुंडली में शनि और चंद्र की युति। यानी किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि और चंद्र एक साथ एक ही घर में बैठे हों तो यह एक खतरनाक योग का निर्माण करता है। इस योग को दूषित योग, विष योग, घात योग जैसे कई नामों से जाना जाता है। प्रत्येक माह में सभी 12 राशियां एक बार इस योग से पीड़ित अवश्य होती हैं। क्योंकि चंद्रमा माह में एक बार शनि के साथ गोचर करता ही है। वर्तमान गोचर में भी शनि-चंद्र की युति बनी हुई है,
शनि-चंद्र युति का प्रभाव
शनि चंद्र की युति जन्मकुंडली के किसी भी भाव में बने वह किसी न किसी रूप में जीवन में दिक्कत पैदा करती ही है। यह युति व्यक्ति के मन में भयंकर असुरक्षा और भय व्याप्त कर देती है। व्यक्ति को हर जगह डर लगता है ऐसे व्यक्ति को हर पल अपने जीवन का अंतिम पल ही लगता है और मृत्यु के भय के मारे वह पागलों जैसी स्थिति में आ सकता है। यदि किसी जातक के लग्न स्थान में शनि-चंद्र युति हो, तो ऐसे व्यक्ति को पूरा जीवन तंगहाली में गुजारना पड़ता है।
लग्न में शनि-चंद्र होने पर
उसका प्रभाव सीधे तौर पर सप्तम भाव पर भी होता है। इससे दांपत्य जीवन दुखपूर्ण हो जाता है। दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर जातक जीवनभर आर्थिक संकटों में उलझा रहता है। उस पर कर्ज बढ़ता रहता है।
– तीसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति का पराक्रम कमजोर कर देता है और वह अपने भाई-बहनों से कष्ट पाता है। चौथे भाव सुख स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर सुखों में कमी आती है और मातृ सुख नहीं मिल पाता है। पांचवें भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर संतान सुख नहीं मिलता और व्यक्ति की विवेकशीलता समाप्त होती है।
छठे भाव में विष योग बना हुआ है तो
व्यक्ति कर्ज में डूबा रहता है और बीमारियों पर बेतहाशा धन खर्च करना होता है। सातवें स्थान में होने पर पति-पत्नी में बनती नहीं है। एक से अधिक विवाह होते हैं।
– आठवें भाव में बना विष योग
व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है। दुर्घटनाएं बहुत होती हैं। नौवें भाव में शनि-चंद्र की युति व्यक्ति को भाग्यहीन बनाती है। भाग्य साथ नहीं देता।
दसवें स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति के पद-प्रतिष्ठा में कमी आती है। पिता से विवाद रहता है।
ग्यारहवें भाव में विष योग व्यक्ति के बार-बार एक्सीडेंट करवाता है। आय के साधन न्यूनतम होते हैं।
बारहवें भाव में यह योग है तो आय से अधिक खर्च होता है।
क्या करें उपाय
इस विष योग से मुक्ति के लिए चंद्रमा और शनि से जुड़े उपाय किए जाते हैं।पीपल के पेड़ के नीचे नारियल को सात बार अपने सिर से उसार कर फोड़ें और इसे प्रसाद के रूप में वितरित करें शनि का कुप्रभाव दूर करने के लिए शनिवार की शाम के समय जब सूर्य अस्त हो चुका हो, उस समय शनिदेव की प्रतिमा या फिर उनके शिला रूप पर तेल चढ़ाएं। सरसों के तेल में काली उड़द व काले तिल डालकर शनि मंदिर में दीया जलाएं।
शनिदेव के बीज मंत्र ऊं शं शनैश्चरायै नम: का जाप करते हुए मंत्र के प्रत्येक अक्षर को आक के पत्तों पर काजल व सरसों के तेल से बनी स्याही से लोहे की कील से अलग-अलग पत्तों पर लिखें। यह दस आक के पत्तों पर लिखें। फिर इन पत्तों को काले धागे से बांधकर माला रूप में शनि प्रतिमा या शिला पर अर्पित करें। शनि मंदिर में गुड़, गुड़ से बनी रेवड़ी, तिल के लड्डू आदि का प्रसाद चढ़ाएं और वितरित करें। पूर्णिमा के दिन रूद्राभिषेक का पाठ करते हुए दूध से शिवजी का अभिषेक करें।