इस्लामिक टेरर ब्रोकर पाकिस्तान की चुप्पी ने ही खोल दिया प्लान ‘K’ का राज
अफगानिस्तान के हालात भयानक हैं. बम धमाकों में सौ से ज्यादा लोग मारे गए लेकिन उसी काबुल एयरपोर्ट पर सुबह से फिर वही भीड़ है. ये अफगानी मौत से नहीं डरते, तालिबानी आतंक से डरते हैं. इन्हें मौत कबूल है, इस्लामिक अमीरात नहीं. ये तालिबान की बंदूकों से नहीं डरते, पर्दे के पीछे चल रहे आतंकी खेल से डरते हैं क्योंकि नए नवेले इस्लामिक अमीरात में जो खून की नदियां बहाई जा रही हैं, वहां ठहरने का साहस अफगानियों में भी नहीं है.
सब कुछ तय था लेकिन आतंकी धमाके में 13 अमेरिकी एलीट मरीन्स मारे जाएंगे शायद ये भर तय नहीं हो सका था. वरना काबुल में आत्मघाती हमला होने वाला है, इसकी एक-एक खबर अमेरिका को पहुंचाई जा चुकी थी और जब हमला हो गया तो पता चला कि हमले का सूत्रधार कौन है?
काबुल के आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तानके हाथ का पहला सबूत मौलवी अब्दुल्ला उर्फ असलम फारूकी है. यही वो पाकिस्तानी है जो इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS-K) का सरगना बताया जाता है. यही वो पाकिस्तानी है जिसे तालिबान ने जान-बूझकर पिछले दिनों जेल से रिहा किया था. यही वो पाकिस्तानी है जो हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा से आतंकी ट्रेनिंग पा चुका है और पाकिस्तान के इसी असलम भाईजान ने काबुल में तालिबान-खुरासान और पाकिस्तान के प्लान को अंजाम दिया है.
जो पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान के आतंकी राज को कायम करने के लिए दोहा से लेकर बीजिंग तक टेरर ब्रोकर बनकर घूमता रहा. इस्लामाबाद में तालिबानियों को बैठाकर रोडमैप समझाता रहा. उस पाकिस्तान की काबुल धमाकों पर चुप्पी का साफ मतलब यही है कि चोर की दाढ़ी में तिनका है.