June 16, 2024     Select Language
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दादी का संदूक !

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स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ !
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !!
★★★
बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद !
मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !!
★★★

मुझकोभाते आज भी, बचपन के वो गीत !

लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !!
★★★

मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल !

गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल !!
★★★

छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन के सब चाव !

दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव !!
★★★

बचपन में भी खूब थे, कैसे- कैसे खेल !

नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल !!
★★★

यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव !

कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव !!
★★★

लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव !

नहीं बची थी अब जहां, बूढी पीपल छाँव !!
★★★

नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़ !

लगे गेम आकाश से, फ़ोन बने हैं नीड़ !!
★★★

धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक !

बच्चों को अच्छी लगे,अब घर में बन्दूक !!
★★★
                            – डॉo सत्यवान सौरभ

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