7 मार्च को किए दान से मिलता है अक्षय पुण्य, श्राद्ध से तृप्त होते हैं पितर
कोलकाता टाइम्स :
फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को बहुत ही खास दिन माना जाता है। परंपराओं और मान्यताओं के मुताबिक फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर व्रत रखने से कई गुना पुण्य मिलता है और हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए इस दिन सूर्योदय से लेकर शाम को चंद्रमा के उदय होने तक व्रत रखा जाता है।
इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की विशेष पूजा और सत्यनारायण व्रत कथा करने की परंपरा है। इस तिथि पर शाम को प्रदोष काल में होलिका दहन भी किया जाता है।
पुराणों के मुताबिक अक्षय पुण्य वाला दिन
हिंदू कैलेंडर का आखिरी दिन फाल्गुन हिंदू पंचांग का आखिरी महीना होता है। इस महीने का आखिरी दिन पूर्णिमा ही होती है। इसलिए ये खास होता है। विष्णु, मत्स्य, ब्रह्म और नारद पुराण के मुताबिक इसे मन्वादि तिथि भी कहा जाता है। यानि इस दिन दिया गया दान बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन किए गए दान से अक्षय पुण्य फल मिलता है। इसलिए इस दिन तीर्थ स्नान और श्रद्धा के मुताबिक अन्न, जल, स्वर्ण या कपड़े का दान देने की परंपरा है।
पितरों की तृप्ति का पर्व भी
पितरों के श्राद्ध का दिन फाल्गुन पूर्णिमा मन्वादि तिथि होने से इस दिन पितृ पूजा का विशेष महत्व है। मत्स्य, नारद और विष्णुधर्मोत्तर पुराण में बताया गया है कि इस दिन श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। कई जगहों पर इस दिन तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है। इस दिन पितरों की पूजा करने से पितृ दोष कम होता है।
पूजा-पाठ के लिए खास दिन
फाल्गुन पूर्णिमा की परंपराएं फाल्गुन पूर्णिमा पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ में स्नान करने की परंपरा है। पुराणों में कहा गया है कि ऐसा करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। स्नान के बाद श्राद्धा के अनुसार दान, व्रत और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लिया जाता है। फिर घर में विष्णु भगवान की पूजा के बाद मंदिर में जाकर दर्शन किए जाते हैं। दिन में सत्यनारायण कथा का पाठ करते हैं। फाल्गुन पूर्णिमा पर जरूरतमंद लोगों को भोजन, पानी और कपड़े के साथ ही जरूरी चीजों का दान करना चाहिए।