घर उजाड़ने के लिए देश में बदनाम है ये गांव
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2003 में जब सिकलीगरों ने आत्मसर्पण किया था, उसके बाद पचौरी के लोगों ने हथियार के कारोबार को बंद कर दिया था। लेकिन सरकार की वादाखिलाफी से बेरोजगारी दूर नहीं हो सकी। जबलपुर में एसटीएफ ने हाल ही में पाचोरी के दो युवकों को हथियारों की तस्करी करते पकड़ा था। कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश हत्याकांड में प्रयुक्त पिस्टल इसी गांव में बनी थी। जिसके बाद से यह गांव फिर सुर्खियों में आ गया है।
गांव के 90 फीसदी लोग खेती-किसानी, मजदूरी या छोटे-मोटे व्यवसाय से जुड़ गए हैं। लेकिन 10 फीसद आज भी अवैध हथियार बनाने के गोरखधंधे से जुड़े हैं। जिससे पूरा गांव अब भी बदनाम है। ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस की कार्रवाई के बीच कई लोग बेरोजगारी और भुखमरी से परेशान होकर मजदूरी व अन्य छोटा-मोटा काम कर रहे हैं लेकिन ‘अवैध हथियार बनाने वालों का गांव’ का कलंक उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है।
2003 में अफसरों ने सिकलीगरों को योजनाओं के तहत लोन दिलाकर स्वरोजगार से जोड़ने की बात कही थी। काम से लगाने का कहा था, लेकिन ये वादे खोखले साबित हुए। बाद के तीन साल तक भले ही कि सी ने हथियार नहीं बनाए लेकिन सरकारी तंत्र के आगे सभी ने घुटने टेक दिए। गरीबी के कारण गांव के युवा चोरी-छिपे फिर चोरी-छिपे अवैध हथियार बनाने व बेचने के धंधे में लग गए हैं। इससे पुलिस वालों ने गांव के लोगों को परेशान कर रखा है। गांव के बाशिंदे शक की नजरों से देखे जाते हैं. यहां के निवासी ‘हथियार बनाने वालों का गांव’ का कलंक धोना चाहते हैं, लेकिन रोजगार भी तो मिले।