October 2, 2024     Select Language
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कम ही जानते हैं, मुंबई अंडरवर्ल्ड का असली डॉन दाऊद नहीं बल्कि कोई और था

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कोलकाता टाइम्स :

अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को कौन नहीं जानता। सभी यही जानते हैं कि दाऊद के नाम का सिक्का हर जगह चला वो चाहे देश हो या विदेश। मुंबई में भी उसने एक एकछत्र राज किया और आज भी वो अंडरवर्ल्ड डॉन के नाम से जाना जाता है लेकिन आपको ये पता नहीं है कि मुंबई का असली डॉन कौन था और मुंबई के लोग किससे सबसे ज्यादा खौफ खाते थे।

एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो अपने पिता के पुलिस विभाग में होने के बावजूद माफिया का बेताज बादशाह बना और पूरी मुम्बई पर राज़ किया और शायद आज भी कर रहा है।…. अंडरवर्ल्ड की पैदाइश से लेकर उसके अब तक के सफर की कहानी एक सीरिज सिलसिलेवार तरीके से बयां करेंगे हम।

असली डॉन -पठान शक्ति

जब भी किसी माफिया गैंग या डॉन की बात चलती है तो सबके ज़हन में जो सबसे पहला नाम आता है वो है मुम्बई अंडरवर्ल्ड का डॉन दाऊद इब्राहिम, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं की जब माफिया सरगनाओं ने मुम्बई(बम्बई) में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया था तब तो दाऊद ने गुनाहों की इस सरजमीं पर अपना पैर भी नहीं रखा था…तो कौन था वो जिसने देश की आर्थिक नगरी को खौफ और आतंक की नगरी बनाने की शुरूआत की?

करीम लाला

हम बात कर रहें हैं बम्बई के 194-1950 के दशक की, पचास के दशक में भी लोग बम्बई की तरफ इस तरह भागते थे जैसे परवाने शमा की तरफ भागते हैं। और इन्हीं परवानों में से एक था करीम लाला। कोई नहीं जानता था, यहां तक की उसका परिवार भी नहीं, कि करीम बाबी बम्बई कब आया था। सिर्फ इतना पता है कि ये तीस के दशक के आस-पास की बात है।

वैसे तो हाजी मस्तान मिर्जा को भले ही मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन कहा जाता है, लेकिन अंडरवर्ल्ड के जानकार बताते हैं कि सबसे पहला माफिया डॉन करीम लाला था। जिसे खुद हाजी मस्तान भी असली डॉन कहा करता था। करीम लाला का आतंक मुंबई में सिर चढ़कर बोलता था। मुंबई में तस्करी समते कई गैर कानूनी धंधों में उसके नाम की तूती बोलती थी। इनमें लोगों को मारना, मकान खाली करवाना आदी काम शामिल थे।

ऊंचा पूरा पठान, लगभग 7 फुट लम्बा अब्दुल करीम खान उर्फ करीम लाला अपनी आंखों में सपने पाले हुए पेशावर से बम्बई आया था। दरअसल करीम लाला का असली नाम अब्दुल करीम शेर खान था। उसका जन्म 1911 में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में हुआ था। वह कारोबारी खानदार से ताल्लुक रखता था। जिंदगी में ज्यादा कामयाबी हासिल करने की चाह ने उसे हिंदुस्तान की तरफ जाने के लिए प्रेरित किया था।

उसने दक्षिण बम्बई में ग्राण्ट रोड स्टेशन के करीब बायदा गली में एक जगह किराए पर ले ली। यहां उसने जुए का एक अड्डा खोला जिसे की सोशल क्लब के नाम से जाना जाता था। उसने जुवारियों को पैसा उधार देने का काम भी किया। उसने इस काम को को अपना धंधा बना लिया इसिलिए उसका नाम करीम लाला पड गया। कुछ वक्त बीतते-बीतते करीम ला का जुआघर अपराध का अड्डा बन गया। मारपीट, झगडे और ठगी रोजमर्रा का काम हो गया। अब तो पूरी बम्बई में उसकी तूती बोलने लगी, पुलिस से भी उसने सम्बन्ध बना लिए थे।

करीम लाला ने मुंबई (बम्बई) में दिखाने के लिए तो कारोबार शुरू कर दिया था, लेकिन हकीकत में वह मुंबई डॉक से हीरे और जवाहरात की तस्करी करने लगा। 1940 तक उसने इस काम में एक तरफा पकड़ बना ली थी। आगे चलकर वह तस्करी के धंधे में किंग के नाम से मशहूर हो गया था। तस्करी के धंधे में उसे काफी मुनाफा हो रहा था।

इसके बाद उसने मुंबई में कई जगहों पर दारू और जुएं के अड्डे भी खोल दिए। उसका काम और नाम दोनों ही बढ़ते जा रहे थे। करीम लाला अब कलफ किए हुए पठानी सूट से ऊपर उठकर सफेद सफारी सूट पहनने लगा था। लाला अपने साथ एक छड़ी भी रखता ता जो की काफी कुख्यात थी। कहते है कि जितना खौफ लाला का ता उतना गी उसकी छड़ी का भी।

करीम लाला ने मस्तान का ध्यान भी अपनी तरफ खिंचा क्योंकि मस्तान के पास सब कुछ तो था, लेकिन बिना बाहुबल मुम्बई पर राज नहीं किया जा सकता और उसे बाहुबल मिल सकता था तो करीम लाला से। 1940 का यह वो दौर था जब मुंबई में हाजी मस्तान और वरदाराजन मुदलियार उर्फ वरदा भाई भी सक्रीय थे। तीनों ही एक दूसरे से कम नहीं थे।

इसलिए तीनों ने मिलकर काम और इलाके बांट लिए थे। करीम लाला की जानदार शख्सियत को देखकर हाजी मस्तान उसे असली डॉन के नाम से बुलाया करता था। तीनों बिना किसी खून खराबे के अपने अपने इलाकों में काम किया करते थे। उस दौरान इनके अलावा मुंबई में कोई गैंगस्टर नहीं था।

अस्सी के दशक तक लाला का दबदबा कायाम था हालांकि लाला अब ज्यादा सक्रिय नहीं रहता था। इसके बाद मुंबई अंडरवर्ल्ड में दाऊद की एंट्री हुई। 1981 से 1985 के बीच करीम लाला गैंग और दाऊद के बीच जमकर गैंगवार होती रही यहां तक की दिनदहाडे खून खराबे होने लगे। नतीजा यह हुआ कि दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी ने धीरे धीरे करीम लाला के पठान गैंग का मुंबई से सफाया ही कर दिया।

इस गैंगवार में दोनों तरफ के दर्जनों लोग मारे गए। लेकिन आज भी लोग करीम लाला को ही मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन मानते हैं। हाजी मस्तान और करीम लाला की दोस्ती भी लोगों के बीच मशहूर रही। 90 साल की उम्र में 19 फरवरी, 2002 को मुंबई में ही करीम लाला की मौत हो गई थी और साथ ही खत्म हो गया मुम्बई माफिया का एक दौर।

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