November 23, 2024     Select Language
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महादेव को सर्वप्रिय है यह व्रत, अदभूत है इसका लाभ  

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कोलकाता टाइम्स :

हते हैं शिव ऐसे देव हैं जो बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। कुछ ऐसे व्रत पूजा है जिससे शिव जी अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं उसी में एक है प्रदोष व्रत । जैसा की नाम से ही जाहिर है किसी भी तरह का दोष हो इस व्रत के करने से वह दोष खंडित हो जाता है भगवान शिव को यह व्रत परम प्रिय है इसलिये इस व्रत में शिवजी की उपासना की जाती है। इस व्रत में भगवान शिव की हर दिन की अलग – अलग पूजा कर अलग – अलग दोष खंडित होते हैं ।

क्या है प्रदोष : प्रदोष काल में किये जाने वाले नियम, व्रत एवं अनुष्ठान को प्रदोष व्रत या अनुष्ठान कहा गया है। व्रतराज नामक ग्रन्थ में सूर्यास्त से तीन घटी पूर्व के समय को प्रदोष का समय माना गया है। अर्थात् सूर्यास्त से सवा घण्टा पूर्व के समय को प्रदोष काल कहा गया है। तिथियों में त्रयोदशी तिथि को भी प्रदोष तिथि की संज्ञा प्रदान की गयी है। इसका मतलब सायंकालीन त्रयोदशी तिथि को किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। प्रदोष व्रत पूर्व विद्धा तिथि के संयोग से मनाया जाता है। अर्थात् द्वादशी तिथि से संयुक्त त्रयोदशी तिथि को यह व्रत आचरित किया जाता है। पक्ष भेद होने के कारण इसे शुक्ल या कृष्ण प्रदोष व्रत कहा जाता है।

दिनों के संयोग के कारण प्रदोष व्रत के नाम एवं उसके प्रभाव में अन्तर हो जाता है। जैसे रविवार को प्रदोष हो तो इसका नाम रविप्रदोष हो जाता है। इसका फल आरोग्य की प्राप्ति बतलाया गया है। सोम प्रदोष व्रत का फल पुत्र की प्राप्ति है। शुक्रप्रदोष से सौभाग्य यानी पति एवं स्त्री को समृद्धि की प्राप्ति होती है। शनिप्रदोष का महाफल बतलाया गया है। प्रदोष व्रत करने वाले स्त्री या पुरुषों को चाहिये कि व्रत के पूर्व दिन सायंकाल नियम पूर्वक व्रत ग्रहण करें। व्रत के दिन प्रात: काल नित्य कर्मादि संपन्न कर संकल्पपूर्वक दिन भर उपवास करें। प्रदोष काल में उमा महेश्वर जी का पूजन पास के किसी देवालय या घर में करें।

अपनी सार्मथ्य के अनुसार पूजन सामग्री, प्रसाद, फूलमाला, फल, विल्वपत्रदि लाकर संभव हो सके तो पति-पत्नी एक साथ बैठकर शिव जी का पूजन करें। यदि मंत्र इत्यादि न आता हो तो नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए पूजन करें। पूजन के उपरांत शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करें। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है। ऎसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है। जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए। यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है।इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है। भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

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