वरुण धवन अपनी फिल्म अक्टूबर के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि इस फिल्म की तैयारी के लिए वह दिल्ली गए थे। वहां के होटल के जिम में एक लड़का मिला था। वह हेड शेफ बनना चाहता था लेकिन उसे शेफ का काम छोड़ कर दूसरे होटल के कामों में लगाया जाता था। कभी जिम में कभी रूम क्लीनिंग में तो कभी कहीं, जिससे वह बहुत दुखी रहता था। वरुण बताते हैं कि मैंने उस लड़के को शूजित सर से भी मिलवाया। उसकी बॉडी लैंग्वेज सर को बहुत पसंद आयी। यह भी जानकारी मिली कि वह स्कूटी से आता-जाता है जिस वजह से मेरा किरदार भी बाइक से फिल्म में आता है। उस लड़के की बॉडी लैंग्वेज को मैंने ले लिया है। उसकी परेशानी देख कर मैंने होटल के मैनेजर से बात भी की कि उसे किचन में काम दे दो, क्योंकि वह शेफ़ बनना चाहता है। तब उन्होंने मुझे बताया कि यहां एक प्रोसेस होता है। अगर सीधे किचन देंगे तो जो चीज उसे मिलेगी, उसकी वह अहमियत कभी नहीं समझेगा। आखिरकार महीने के अंत में उसे किचन में डाल दिया गया। मुझे यह बात जान कर बहुत ख़ुशी हुई।
वरुण ने आगे यह भी बताया कि अब वह हॉस्पीटेलिटी इंडस्ट्री को बहुत हद तक समझ सके हैं। उन्होंने बताया कि इस फिल्म का किरदार निभाते हुए वह यह बात समझ पाए हैं कि सबसे ज्यादा परेशानी होती है उनके पैरों को, क्योंकि उनको हमेशा खड़ा रहना पड़ता है। कई बार तो इवेंट खत्म होने के बाद वो लोग बैकडोर से सीधे जमीन पर लेट जाते हैं, क्योंकि उनके पैरों में बहुत दर्द होने लगता है। इतनी देर खड़े रहने से पैरों में गांठें पड़ जाती हैं। ये परेशानी यहां आम होती है। उन लोगों को हमेशा निट और क्लीन भी होना पढ़ता है। हर दिन शेव करके रहना पड़ता है। इन सबके बावजूद पैसे बहुत कम मिलते हैं।