May 20, 2024     Select Language
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कही आप गलत वक़्त ब्रेकफास्ट, लॉन्च, डिनर  तो नहीं करते ?  

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अक्सर हम अपने खान-पान का ना ही तो तय समय रखते हैं ना सामग्री का चयन ठीक से करते हैं।  अगर हम हमेसा अपने बॉडी क्लॉक के अनुसार खाना खाय तो कई स्वास्थ्य ख़तरों से आसानी  सकते हैं। अक्सर हम सस्ते में डिनर का लुफ्त उठाते हैं तो डिनर में लांच का।
एक शोध से पता चला है कि जो महिलाएं वज़न घटाने की कोशिश कर रही हैं अगर वो जल्दी लंच करें तो ज़्यादा वज़न घटेगा। एक अन्य शोध में कहा गया है कि नाश्ता देरी से करने से बॉडी मॉस इंडेक्स (बीएमआई) बढ़ जाता है।
किंग्स कॉलेज लंदन में न्यूट्रीशनल साइंस के अतिथि प्राध्यापक डॉक्टर गेरडा पॉट कहते हैं, ‘एक बहुत पुरानी कहावत है- शहंशाह की तरह नाश्ता करो, राजकुमार की तरह दोपहर का भोजन करो और रात का भोजन कंगाल की तरह करो। और मुझे लगता है कि इस कहावत में कुछ सच्चाई है।’
अब वैज्ञानिक इन नतीजों की वजह पता लगाने और खाने के समय और बॉडी क्लॉक के बीच संबंध का पता लगाने की कोशिशें कर रहे हैं।
आप कब-कब खाते हैं
आपको लगता है कि हमारा बॉडी क्लॉक सिर्फ़ हमारी नींद को ही निर्धारित करता है। लेकिन वास्तव में हमारे शरीर की हर कोशिका की अपनी जैविक घड़ी होती है। ये हमारे रोज़मर्रा के कामों को निर्धारित करती हैं। जैसे सुबह उठना, ब्लड प्रेशर को नियमित करना, शरीर के तापमान और हार्मोन के स्तर को नियमित करना आदि।
अब विशेषज्ञ ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे खाने की आदतें- जैसे असमय खाना या रात में बहुत देर से खाना खाने का हमारे अंदरूनी चक्र पर क्या असर होता है।
क्रोनो न्यूट्रीशन या बॉडी क्लॉक और न्यूट्रीशन पर शोध कर रहे डॉ. पॉट कहते हैं, “हमारे शरीर की एक अपनी जैविक घड़ी होती है जो निर्धारित करती है कि शरीर की सभी चयापचयी (मेटाबॉलिक) क्रियाएं कब-कब होनी चाहिए।”
“इससे पता चलता है कि रात में भारी खाना वास्तव में, पाचन की दृष्टि से सही नहीं है क्योंकि इस समय शरीर अपने आप को सोने के लिए तैयार कर रहा होता है।”
यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे में क्रोनोबायोलॉजी और इंटीग्रेटिव फीज़ियोलॉजी में रीडर डॉ. जोनाथन जॉन्सटन कहते हैं, “शोध से पता चलता है कि हमारा शरीर रात के समय उतना बेहतर पाचन नहीं कर पाता, हालांकि अभी हम ये नहीं समझ पाए हैं कि ऐसा क्यों है।”
एक थ्योरी ये है कि ये शरीर की ऊर्जा ख़र्च करने की क्षमता से जुड़ा है। “शुरुआती सबूत ये दर्शाते हैं कि भोजन के पाचन में जो ऊर्जा आप ख़र्च करते हैं वो शाम के मुक़ाबले में सुबह में अधिक होती है।”
शिफ़्टों में काम करने का असर
डॉ. जॉन्सटन कहते हैं कि हम कब खाते हैं और इसके हमारे स्वास्थय पर होने वाले असर को सही से समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मोटापे से निबटने पर भी बड़ा असर हो सकता है। वो कहते हैं, “अगर हमें कोई सुझाव देना हो तो हम कहेंगे कि आप क्या खाते हैं आपको वो बदलने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर आप सिर्फ़ खाने का समय बदल देते हैं तो ये मामूली-सा बदलाव भी हमारे समाज में स्वास्थ्य को बेहतर करने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है।”
इसके परे हमारे खाने के समय के प्रभाव उन लोगों पर भी हो सकते हैं जिनका बॉडी क्लॉक गड़बड़ाया रहता है, जैसे कि शिफ्टों में काम करने वाले लोग। एक अनुमान के मुताबिक बीस प्रतिशत लोग शिफ्टों में नौकरियां करते हैं। जानवरों पर किए शोध बताते हैं कि ख़ास समय पर खाने से सिर्काडियन लय (शरीर में प्राकृतिक रूप से चलने वाली क्रियाएं) फिर से तय हो सकती हैं। नए शोध में ये पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि क्या इसका असर मानवों पर भी होता है।
दस पुरुषों पर किए गए एक शोध से डॉ. जांस्टन ने पता लगाया कि खाने के समय को पांच घंटे आगे बढ़ा देने का असर उनके बॉडी क्लॉक पर भी पड़ा। हालांकि ये शोध बहुत छोटा था, लेकिन इससे ये पता चला कि तय समय पर खाने से बॉडी क्लॉक में गड़बड़ी का सामना कर रहे लोगों को मदद मिल सकती है। बॉडी क्लॉक के गड़बड़ होने के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव होते हैं।

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