ग्रहों की युति पहुंचा सकता है आसमान पर, ऐसे हैं इनके प्रभाव
कोलकाता टाइम्स :
भारतीय वैदिक ज्योतिष प्रत्यक्ष विज्ञान है। इसमें ग्रहों की गति, स्थिति और युतियों के द्वारा मनुष्य का सटीक भविष्य कथन करने की सामर्थ्य है। दो या दो से अधिक ग्रहों की युति अर्थात् साथ होने से अनेक प्रकार के शुभाशुभ योग बनते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से…
किसी जन्मकुंडली में चंद्र यदि मकर राशि में बैठा हुआ है तो उस व्यक्ति को अपनी जीवनकाल में कम से कम एक बार भयंकर विफलता का सामना करना पड़ता है। इस कारण जातक समाज में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहता। जब चंद्रमा के साथ शनि-राहु या राहु-मंगल हों तो जातक मानसिक रूप से विक्षिप्त हो सकता है। उसकी मानसिक स्थिति इतनी खराब हो जाती है किवह स्वयं को पागल समझने लग जाता है। जब किसी जन्मकुंडली में मंगल और शुक्र एक ही घर में हों तो उस व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बनते हैं। चाहे पर कितना भी समझदार, संयमी और सदाचारी दिखाई देता हो। उच्च का शनि जब लग्न में हो तो वह जातक को उच्च श्रेणी का विद्यार्थी बनाता है। ऐसा जातक सामान्य परिवार में जन्म लेने के बाद भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर महान विद्वानों में प्रतिष्ठित होता है।
ग्रहों के होते हैं छह प्रकार के बल, क्या होता है इनका प्रभाव
गुरु जब कर्क लग्न में हो तो जातक विश्वास योग्य, उदार हृदय, सादा जीवन जीने वाला, स्पष्ट वक्ता, सत्यप्रिय तथा चारीत्रिक शुद्धता वाला होता है। गुरु के 5वें या 9वें भाव में होने पर भी यही परिणाम मिलता है।
यदि कर्क लग्न में या नवम स्थान में चंद्र-गुरु साथ में हों तो जातक महान नेता बनता है। वह सत्य के मार्ग पर चलकर देश-दुनिया में ख्याति अर्जित करता है। मकर लग्न में केतु हो तो जातक क्षय रोगों से पीड़ित होता है। वह अत्यंत क्षीणकाया और निर्बल होता है।
यदि मकर राशि में सातवें घर में केतु हो तो उसके पति या पत्नी को भी क्षय रोग होता है। जन्मकुंडली के किसी भी घर में राहु-चंद्र का साथ में होना व्यक्ति को जेल होना दर्शाता है। ऐसा व्यक्ति भयंकर आरोपों से घिरा रहता है। मुकदमे में उलझा रहता है और उसकी मृत्यु भी कष्टकारी स्थिति में होती है।
कुंडली के किसी भी भाव में कर्क राशि में गुरु-चंद्र या शुक्र-चंद्र एक साथ होने पर व्यक्ति अत्यंत सुंदर एवं सदैव स्वस्थ होता है।