May 6, 2024     Select Language
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मामले से दोषियों की सजा सब होती है बस एक कील गाड़कर 

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कोलकाता टाइम्स : 
मंडी जिला के बागी गांव के देवस्थल में होता है अनूठा न्याय। विविधताओं से भरी देवभूमि हिमाचल। प्राकृतिक सौंदर्य से ही परिपूर्ण नहीं बल्कि अनूठे रीति रिवाजों, परंपराओं,आस्थाओं व रोचक रोमांचक क्रियाओं से सराबोर इस प्रदेश में ऐसा बहुत कुछ है। इसे अभी देश व दुनिया के घुम्मकड़ों, पर्यटकों व प्रकृति प्रेमियों को दिखाया व बताया जाना बाकी है। मंडी जिला की बालीचौकी क्षेत्र की खलवाहण पंचायत के बागी गांव में स्थित देवता कोटलू मारकंडा की न्याय व्यवस्था रोमांचित करने वाली है। जिज्ञासाओं व रहस्यों से भरपूर है।

बागी गांव जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर बसा है। देव कोटलू मारकंडेय की न्याय व्यवस्था बरबस ही एक अलग तरह का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। यह न्याय व्यवस्था अपने आप में इस पहाड़ी प्रदेश में देव आस्था को मजबूत करती है और आज भी देवभूमि में लोग किस तरह से देवी देवताओं पर भरोसा करते है, कितनी गूढ़ आस्था इसमें रखते हैं, को मजबूत करती है। पूरे इलाके में जब कोई व्यक्ति किसी भी तरह से पीडि़त हो जाए वह यह समझे कि उसके साथ बेइंसाफी हुई है, अन्याय किया गया है। उसे किसी द्वारा तंग किया गया है, उस पर किसी ने नुकसान पहुंचाने के लिए जादू टोना कर दिया है, किसी ने उसका आर्थिक व शारीरिक अहित करने के लिए उसके खिलाफ कोई साजिश रची है, उसकी जमीन को दबा लिया गया है, उसकी संपत्ति को हड़प कर लिया गया है। उसके परिवार के किसी व्यक्ति के साथ झगड़ा किया गया है या किसी ने उसे व उसके परिवार को नुकसान पहुंचा कर अपने को कहीं छुपा लिया है तो मीलों दूर बालीचौकी पुलिस चौकी, औट थाना या फिर कुल्लू जिला के बंजार थाना जाकर रपट लिखवाने की जरूरत नहीं है, सीधे अपने गांव के मंदिर में जाएं और न्याय के लिए एक लोहे की कील मंदिर परिसर जो लकड़ी पत्थर का बना है, प्राचीन पहाड़ी शैली में है, गाड़ दीजिए। कील गाड़ते ही आपका मामला देवता की अदालत में दर्ज हो जाएगा।

देवता अपने श्रद्धालु को न्याय दिलाने के लिए उसका कोई नुकसान करके एहसास दिलाने का प्रयास करता है और जब बार बार कोई अनिष्ठ, नुकसान या कोई अनहोनी दोषी व्यक्ति के साथ होने लगती है तो उसे लगता है कि उसने जो कोई अपराध किया है, उसका मामला देवता की अदालत में चला गया है। अब वह बच नहीं सकता। दोषी व्यक्ति देवता के गूर से जाकर मिलता है। अपना गुनाह कबूल कर लेता है। गुनाह कबूल करते ही गूर पीडि़त पक्ष को बुलाता है। दोनों के सामने मंदिर परिसर में गाड़ी गई कील को उखाड़ दिया जाता है। इसके लिए अपराधी पक्ष को अपने साथ एक बकरा भी भेंट स्वरूप ले लाना पड़ता है। बकरे की बलि दी जाती है और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है। लेकिन बलि प्रथा पर प्रतिबंध के बाद अब नारियल से काम चलाया जा रहा है।
गूर डोरे राम का कहना है कि सदियों से इस तरह की परंपरा चली आ रही है, लोगों को देवता के न्याय पर पूरा भरोसा है, कभी कोई मामला पुलिस या अदालत में नहीं गया, सब यही निपट जाते हैं, देवता के आदेश को सभी सिर माथे स्वीकार करके मानते हैं।
”यह अनूठी न्याय प्रणाली सबको मान्य है। इलाके के लोग ही नहीं बल्कि कुल्लू जिला के कई गांवों से भी लोग यहां न्याय के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में अभी भी सैकड़ों लोहे की कीलें, छल्ले, कड़े आदि गड़े हुए हैं जो इस बात का गवाह हैं कि अब भी कई मामले यहां पर लंबित पड़े हैं, कील गाडऩे वाले यानी मामला दर्ज करवाने वालों को पूरा भरोसा है कि एक दिन अपराधी जरूरी देवता के दरबार में हाजिर होगा और अपना गुनाह कबूल करेगा। इससे मामला सुलट जाएगा

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