May 9, 2024     Select Language
Editor Choice Hindi KT Popular मनोरंजन

इस मशहूर एक्टर को चौकीदार तक की नौकरी से कभी हटा दिया गया था

[kodex_post_like_buttons]

कोलकाता टाइम्स :

19 मई 1974 को उत्तरप्रदेश के मुजफ्फनगर जिले के बुढ़ाना गांव में जन्में नवाज के पिता एक किसान थे। नवाज़ सात भाइयों और दो बहनों में से एक हैं। नवाज़ का परिवार काफी बड़ा था और आमदनी सीमित तो ज़ाहिर है उनका बचपन काफी अभावों भरा रहा है। वहां से शुरू हुई उनकी यात्रा आज जिस मुकाम पर पहुंची है उस पर किसी को भी गर्व हो सकता है! आइये इस बेहतरीन एक्टर के बारे में जानते हैं कुछ खास बातें…

मुजफ्फरनगर से मुंबई तक

मुजफ्फरनगर जिले के छोटे-से कस्बे बुढ़ाना से शुरूआती स्कूलिंग के बाद नवाज़ हरिद्वार पहुंचे जहां उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया। उसके बाद वो दिल्ली आ गए। दिल्ली में उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया और 1996 में वहां से ग्रेजुएट होकर निकले। उसके बाद नवाज़ ‘साक्षी थिएटर ग्रुप’ के साथ जुड़ गए जहां उन्हें मनोज वाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसके बाद वो मुंबई चले आये और यहां से उनकी असली संघर्ष की दास्तान शुरू हुई।

जब चौकीदार बने नवाज़

मुंबई आने से पहले की बात है। दिल्ली में नवाज़ुद्दीन को अपने खर्चे चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। बहुत खोजने के बाद उन्हें चौकीदार की नौकरी मिली। इस नौकरी को पाने के लिए भी नवाज़ को कुछेक हज़ार रुपये गारंटी के रूप में जमा कराने थे। जो उन्होंने किसी दोस्त से लेकर भरे। वे शारीरिक रूप से काफी कमजोर से थे, जब भी मौका मिलता वो बैठ जाया करते जबकि चौकीदारी करते हुए उनकी ड्यूटी खड़े रहने की थी। एक दिन मालिक ने उन्हें बैठा हुआ देख लिया और उसी दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। नवाज़ कहते हैं कि उस कम्पनी ने गारंटी के लिए जमा की गयी रकम भी नहीं लौटाई।

वेटर, मुखबिर और चोर बने

नवाज़ के अंदर एक क्रिएटिव भूख शुरू से ही रही है। इसलिए भी वो नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से जुड़े थे! बहरहाल, क्या आप जानते हैं 1999 में आई फ़िल्म ‘शूल’ में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक वेटर की भूमिका में थे। फ़िल्म में एक्टर मनोज वाजपेयी अपनी पत्नी (रवीना टंडन) और बिटिया के साथ एक रेस्तरां में जाते हैं। वहीं मेनू कार्ड लेकर ऑर्डर लेने और भोजन परोसने भर का रोल निभाया था नवाज़ ने! इतना ही नहीं आमिर की फ़िल्म ‘सरफ़रोश’ में भी नवाज़ुद्दीन एक मुखबिर की छोटी सी भूमिका में दिखे थे। उस वक़्त शायद ही किसी ने सोचा था कि छोटे मोटे किरदार करने वाला यह आर्टिस्ट किसी दिन लीड रोल भी करेगा। जैसा कि हमने ‘फ्रीकी अली’, ‘मांझी: The Mountain Man’ जैसी फ़िल्मों में देखा है। आपने नवाज़ को ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में भी एक चोर की छोटी सी भूमिका में देखा होगा।

संघर्ष के दिन

नवाज़ बताते हैं कि मुंबई में संघर्ष का एक ऐसा समय था कि वह एक समय खाना खाते तो दूसरे समय के लाले पड़ जाते। उन्होंने कई बार हार मानने की सोची और सब कुछ छोड़कर वापस गांव जाने का सोचा।  उनके साथ मुंबई आए सभी दोस्त अपने घरों को लौट गए, लेकिन वो डटे रहे। बकौल नवाज़- ”हताशा और मायूसी के उन दिनों में मुझे अपनी अम्मी की एक बात याद रही कि 12 साल में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं बेटा तू तो इंसान है।”

कामयाबी

मुंबई में वो लगातार रिजेक्ट होते रहे क्योंकि सबको हीरो चाहिए था और बकौल नवाज़ वो हीरो मेटेरियल नहीं थे। इसके बाद उन्‍होंने कई छोटी-बड़ी फ़िल्मों में छोटे-छोटे किरदार किये। लेकिन, असली पहचान उन्‍हें ‘पीपली लाइव’, ‘क‍हानी’, ‘गैंग्‍स ऑफ वासेपुर’, ‘द लंच बॉक्‍स’ जैसी फ़िल्मों से मिली। अब तक लोगों ने नवाज़ की प्रतिभा को पहचान लिया था और फिर उनके करियर की गाड़ी चल निकली। हाल ही में शाह रुख़ ख़ान के साथ ‘रईस’ में भी उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई। फिल्मफेयर अवार्ड तक जीत चुके नवाज़ इनदिनों अपनी फ़िल्म मुन्ना माइकल, बाबु मोशाय बन्दुकबाज़ आदि की शूटिंग में व्यस्त हैं।

आपको बता दें, कि कामयाबी पाने के बाद भी नवाज़ बिलकुल नहीं बदले हैं। वो फ़िल्मी पार्टियों से दूर रहते हैं। सादा जीवन जीते हैं। लेकिन, एक्टिंग दमदार करते हैं। ‘मांझी: The Mountain Man’ में उनका एक संवाद है – “भगवान के भरोसे मत बैठो, क्या पता भगवान ही तुम्हारे भरोसे बैठा हो!” वाकई, नवाज़ ने कर दिखाया है! नवाज़  उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं, जो लोग यहां मायानगरी में एक्टर बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं! इसी शुक्रवार नवाज़ की फ़िल्म ‘मॉम’ रिलीज़ हो रही है। नवाज़ ‘मुन्ना माइकल’ में भी नज़र आयेंगे।

Related Posts